बिहार के विकास में एनजीओ की भूमिका प्रेरक व निर्णायक
बिहार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और सामाज कल्याण व विकास के दायरे व अवसर
बिहार भारत का एक पूर्वी / उत्तरी राज्य है जो घनी आबादी वाले राज्यों की पंक्ति में तीसरे स्थान पर आता है. यह अत्यधिक आबादी वाला राज्य क्षेत्रफल के हिसाब से देश के सबसे बड़े राज्यों की श्रेणी में आता है. बिहार की भूमि शुरू से संघर्षों की भूमि रही है. चाहे स्वतंत्रता के लिए संघर्ष हो या कि जमीदारी व्यवस्था और जाति व्यवस्था के खिलाफ, बिहार की जनता हमेशा सबसे आगे रही है. राज्य की खनिज और प्राकृतिक संपदा से लोगों को वाचित रखा गया है.
एक तरफ बिहार का शिक्षित वर्ग, युवा पीढ़ी और प्रतिभाएं राज्य की विशेष सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखते हुए देश के अग्रणी प्रतिभासंपन्न व्यक्तित्व व श्रेष्ठ बौद्धिक स्तर पर अपना हस्तक्षेप रखते हैं साथ ही राज्य को एक अलग पहचान व दर्जा देते है. दूसरी ओर बिहार की अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और बहुत कम प्रतिशत में शहरी विकास के विशेषाधिकारों की तक उनकी पहुंच है. बिहार की आबादी का एक बड़ा हिस्सा श्रम कार्य में लगा हुआ है. कम नौकरियों के अवसरों के कारण भारत के अन्य हिस्सों जिनमें विशेष रूप से पंजाब, महाराष्ट्र और गुजरात में प्रवास राज्य की जनता के बड़े हिस्से को श्रमिक के रूप में करना पड़ता है. ज्यादातर आर्थिक तौर पर निचले तबके के लोग कई बार बिहार से दूसरे राज्यों में पलायन कर जाते हैं. कई बार जहाँ वे पलायन के दौरान कार्यरत रहते हैं वहां उनको अतिवादी समूहों या पहचान की राजनीति और क्षेत्रवाद में शामिल अन्य संगठनों द्वारा हिंसा और अपमान का सामना करना पड़ता हैं. क्षेत्र में संसाधनों की कमी और विकास के आभाव में वे पलायन के लिए मजबूर होते हैं.
कृषि राज्य में आर्थिक व्यवस्था का दूसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र है, लेकिन बड़ी आबादी छोटे आकार के खेतों पर खेती करने पर मजबूर है. मुख्य फसलें मक्का, चावल और गेहूं और कुछ दलहन हैं. सब्जियां, विशेष रूप से आलू, प्याज, फूलगोभी राज्य के बड़े हिस्सों में उगाए जाते हैं. बागवानी में लीची, अनानास, आम, केला और अमरूद शामिल हैं. भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में सबसे बुनियादी उद्योगों को कच्चे माल का प्रमुख आपूर्तिकर्ता होने के बावजूद राज्य में औद्योगिक विकास बहुत सीमित है.
ग्रामीण आबादी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति दयनीय है, महिला से पुरुष अनुपात बहुत है और साक्षरता दर बहुत कम है. संसाधनों से वंचित लोगों का जीवन स्तर बहुत खराब है. शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक उनकी पहुंच बहुत कम है. बिहार की पिछड़ी जातियों के लोगों को उनके लाभों के लिए राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा शुरू की गई योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में जानकारी नहीं है. लोगों में जागरूकता की कमी राज्यऔर केंद्र सरकारों की भूमिका आलोचना का आधार है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र की पिछडी जातियों के विकास के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी देखी गई है.
इन ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के लोग अभी भी अपनी बुनियादी जरूरतों जैसे पीने के लिए स्वच्छ पानी, सफाई व्यवस्था, अपने बच्चों के लिए शिक्षा और समाज में परिवार की महिला सदस्यों के लिए एक सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण की पूर्ति के लिए लड़ रहे हैं. स्वतंत्रता के बाद सदी के दो तिहाई से अधिक समय बीतने के बाद भी, दलित, पिछड़े और गरीब किसान आजादी होने के बाद से आजिविकोपर्जन हेतु अपनी न्यूनतम आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए इंतजार कर रहे हैं.
खेत मजदूर मौजूदा विभिन्न अधिनियमों में संशोधन के अलावा भारतीय संविधान में पारित श्रम कानूनों को लागू करने के लिए बंधन के खिलाफ लड़ते आ रहे हैं. ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों की कामकाजी महिलाओं की स्थिति पुरुषों की तुलना में अधिक दयनीय है. समाज और परिवार में भी महिलाओं की सामाजिक स्थिति एक गुलाम की तरह है. शारीरिक, मानसिक और यौन उत्पीड़न जिसमें पीछा करना, छेड़छाड़ और बलात्कार शामिल है. घरेलू हिंसा, कन्या भ्रूण हत्या और शिशुहत्या, दहेज प्रथा, बाल विवाह महिलाओं की इस दयनीय स्थिति के लिए जिम्मेदार अन्य प्रमुख सामाजिक कुरीतियाँ हैं. स्कूलों में लड़कों की तुलना में छात्राओं की संख्या कम है. उचित सफाई व्यवस्था, जागरूकता और गरीबी के कारण, पिछड़े वर्ग के लोग सामान्य जीवन जीने के लिए जरुरी सुविधाओं के लिए संघर्षरत है.
बाल श्रम, बच्चों द्वारा कचरा बीनना, बाल तस्करी और मादक पदार्थों की लत समाज में अन्य प्रमुख सामाजिक समस्याएं हैं. 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे कुपोषण और अन्य संबंधित पोषण संबंधी कमियों से पीड़ित हैं. नवजात शिशुओं की मृत्यु के मामले बहुत अधिक हैं, जो उच्च जोखिम वाले गर्भधारण और अन्य विभिन्न मातृ समस्याओं और मातृ और बाल मृत्यु के लिए जिम्मेदार अन्य प्रमुख कारक हैं. यह समस्याएं ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में आपातकालीन चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण हैं.
स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों के बारे में जागरूकता की कमी के कारण, शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में आबादी के पिछड़े वर्ग के जीवन के लिए खतरा बना रहता है. लोगों को एसटीडी और आरटीआई और अन्य रोगों का अधिक खतरा है. समाज का दलित व कमजोर उपेक्षित वर्ग अपने विकास के साथ-साथ समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा के लिए ध्यान चाहता है.
बिहार में एनजीओ की परिवर्तनकारी भूमिका
बिहार के स्वयं सेवी संस्थान, सामाजिक संगठन, गैर लाभ संगठन / गैर सरकारी संगठन (एनजीओ / एनपीओ) राज्य और यहाँ की जनता के सामाजिक विकास और कल्याण का हिस्सा हैं. बिहार में एनजीओ शहरी और ग्रामीण समुदायों के सामाजिक विकास कार्यक्रमों और जनकल्याण कार्यक्रमों और गतिविधियों के जरिए सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं. बिहार में एनजीओ की सरकार और जन कल्याण समूहों द्वारा संचालित और आयोजित सामाजिक विकास और जन कल्याण के कार्यक्रमों और मुद्दों में निरंतर भागीदारी रही है. बिहार के एनजीओ हमेशा बल कल्याण, जन विकास, शिक्षा, सामाजिक जागरूकता और अन्य उद्देश्यों पर आधारित जनउत्थान और बेहतरी की योजनाओं में भाग लेने के लिए और काम करने के लिए आगे रहे है तथा समाज सेवा कार्यों के लिए तत्पर रहते हैं.
बिहार में गैर सरकारी संगठन बाल शिक्षा, बाल कल्याण, बाल अधिकार, महिला विकास, महिला सशक्तीकरण, वृद्ध जनों के कल्याण के लिए, वृद्धाश्रमों के सञ्चालन, शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग व्यक्तियों, पिछड़ी बस्तियों और बच्चों के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं. एनजीओ अच्छी तरह से शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय, आपदा प्रबंधन, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, कृषि विकास, सामाजिक जागरूकता, पिछड़ा और वंचित समुदायों के उत्थान, गरीबी और संकट में राहत के कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं.
बिहार में गैर सरकारी संगठनों द्वारा रोजगार, कन्या भ्रूण हत्या रोकने, प्राकृतिक जल संचयन, पशु कल्याण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, खेल, कला का विकास, शिल्प और संस्कृति, विरासत संरक्षण, ऐतिहासिक स्थानों के संरक्षण से संबंधित कार्यक्रमों और अन्य विविध जन कल्याण और विकास से सम्बंधित कार्यक्रमों को लागू किया जा रहा है. बिहार में पर्यावरण सुरक्षा और संरक्षण, मानव अधिकार, सामाजिक समानता, पेयजल मुद्दों, कानूनी जागरूकता और सहायता, पोषण, सूचना का अधिकार, ग्रामीण और शहरी विकास, स्वयं सहायता समूहों के गठन और समर्थन, अनुसंधान और विकास जैसे मुद्दों पर गैर-सरकारी संगठन मुख्य रूप से निरंतर सक्रिय है और इनको लागू करने का मुख्य हिस्सा हैं.
बिहार के एनजीओ
- अररिया एनजीओ
- अरवल एनजीओ
- औरंगाबाद एनजीओ
- बांका एनजीओ
- बेगूसराय एनजीओ
- भागलपुर एनजीओ
- भोजपुर एनजीओ
- बक्सर एनजीओ
- दरभंगा एनजीओ
- पूर्वी चंपारण (मोतिहारी) एनजीओ
- गया एनजीओ
- गोपालगंज एनजीओ
- जमुई एनजीओ
- जहानाबाद एनजीओ
- कैमूर (भभुआ) एनजीओ
- कटिहार एनजीओ
- खगड़िया एनजीओ
- किशनगंज एनजीओ
- लखीसराय एनजीओ
- मधेपुरा एनजीओ
- मधुबनी एनजीओ
- मुंगेर (मोंघियर) एनजीओ
- मुजफ्फरपुर एनजीओ
- नालंदा एनजीओ
- नवादा एनजीओ
- पटना एनजीओ
- पूर्णिया एनजीओ
- रोहतास एनजीओ
- सहरसा एनजीओ
- समस्तीपुर के एनजीओ
- सारण एनजीओ
- शेखपुरा एनजीओ
- शेहर एनजीओ
- सीतामढ़ी एनजीओ
- सीवान एनजीओ
- सुपौल के एनजीओ
- वैशाली एनजीओ
- पश्चिम चंपारण एनजीओ